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संगीतमय श्रीराम कथा में प्रभंजनानंद ने कह दी जीवन की बड़ी बात, भगवान के चरित्र का चिंतन करने मात्र से ही सुधर जाएगा चरित्र, पढ़ें पूरी खबर 

नगर के गांधी इंटर विद्यालय के मैदान में नौ दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा में हर दिन आस्था की उमड़ रही भीड़, शाम होते ही भक्तिरस में डूब रहे शहरवासी

Report by Nawada News Xpress 

नवादा / सूरज कुमार 

नवादा में चल रहा प्रभंजनानंद जी महाराज का संगीतमय श्रीराम कथा में भक्तिरस का आस्था देखते बन रहा है। हर रोज शाम होते ही शहरवासी भक्तिमय हो रहे हैं। इतना ही नहीं भगवान की भक्ति के साथ-साथ ज्ञानवर्धक प्रवचन लोगों को खूब भा रहा है।

उन्होंने प्रवचन के दौरान कहा कि भगवान अनंत हैं, उनका चरित्र अनंत है, उनकी लीला अनंत है, फिर भी भगवान के उन अनंत चरित्रों में जितना चरित्र चिंतन हम कर लें, उससे हमारे चरित्र का निर्माण होता है। भगवान के चरित्र का चिंतन करने का उद्देश्य यही है कि हमारा चरित्र सुधर जाए।

उन्होंने कहा कि भगवान का चरित्र वो दर्पण है, जिसमें हम अपना सुधार कर लें। अयोध्या से आये श्री श्री स्वामी प्रभंजनानंद जी महाराज संगीमय श्रीराम कथा के दौरान श्री रामजी की जीवनी का वर्णन करते हुए कई ज्ञानवर्धक बातें कही। 

आरती के साथ शुरू हुआ श्रीराम कथा 

श्रीराम कथा शुरू होने से पूर्व आरती की गई, जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए। उन्होंने कहा कि दर्पण कभी झूठ नहीं बोलता। दर्पण के सामने खड़े होकर हम गड़बड़ को सुधार करते हैं, उसी प्रकार भगवान श्रीराम का चरित्र ऐसा निर्मल दर्पण है, जिस दर्पण में हम अपने चरित्र को देखें कि हमारी क्या गलतियां हैं।

पुरुषोत्तम भगवान रामजी ने क्या किया वो हम करें, या उन्होंने क्या नहीं किया वो हम ना करें, यह देखकर रामचरित्र के दर्पण में हम अपने जीवन का सुधार कर लें, यही कथा सुनने का सार्थक फल है। अपने आपको हम पवित्र कर लेंगे। संसार के लोग व्यवहार को देखते हैं,

लेकिन भगवान भाव को देखते हैं। आपका भाव बहुत अच्छा हो, लेकिन व्यवहार में आप चूक गए तो संसार में आप सफल नहीं हो सकते और अगर भगवान के साथ व्यवहार में चूक गए तो कोई बात नहीं, यदि भाव आपका ठीक रहा तो काम चल जाएगा। 

हमारी संस्कृति है सम्मान देने वाला 

हमारी संस्कृति प्रणाम, आदर और शीश झुकाने वाली संस्कृति है। हम सभी को सम्मान देने वाले प्राणी हैं। चरित्र सबसे मूल्यवान वस्तु है जो ज्ञान, तप, शील और सद्गुणों से उन्नत होता है। चिंतन और आचरण से चरित्र पुष्पित और पल्लवित होता है, जिनके पास शुभ विचार है, उनका चरित्र भी उन्नत होता है। प्रयास यह रहे कि आपका चरित्र दृष्टांत, गाथा और उदाहरण बन जाए। 

भारतीय संस्कृति में राम जैसा चरित्र किसी के पास नही

देवर्षि नारद परमात्मा के मन हैं और सद्ग्रन्थों के मूल में प्रेरक सत्ता भी नारद ही हैं। सबसे उन्नत चीज चरित्र है और हमारी भारतीय संस्कृति में राम जैसा चरित्र किसी के पास नही है। श्रेष्ठता, दिव्यता व उच्चता के मानकों के प्रतिमान भगवान श्रीराम हैं।

उन्होंने कहा कि नैतिकता मूल वस्तु है, आप महान हैं, लेकिन शील सम्पन्न नहीं हैं तो आपकी महानता व्यर्थ है। मन की उत्पत्ति काम से हुई है, इसलिए वह काम से मुक्त नहीं हो पाता। मन को काम से मुक्त कर लेना जीवन का बड़ा पुरुषार्थ है।

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