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होलिका दहन व होली को लेकर लोगों में बनी असमंजस को लेकर ब्राह्मण महासभा ने क्या किया शुभ मुहूर्त जारी, पढ़ें पूरी खबर

13 मार्च को होलिका दहन, 14 मार्च को आतर तथा 15 मार्च को मनाई जाएगी रंगोत्सव होली व 16 मार्च रविवार को को होगी बुढ़वा होली (झुमटा)

Report by Nawada News Xpress

नवादा / सूरज कुमार

होली को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। इसके समाधान को लेकर अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा एवं अध्यात्म भारती परिषद के विद्वतजनों ने शास्त्रसंगत निर्णयसिन्धु एवं अन्य ग्रंथों तथा बनारस पंचांगों के आधार पर निर्णय लिया है कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा दो दिन होने से होलिका दहन के एक दिन बाद होली का पर्व मनाया जाएगा। फाल्गुन पूर्णिमा का व्रत व होलिका दहन 13 मार्च व स्नान-दान की पूर्णिमा 14 मार्च शुक्रवार को होगी तथा 14 मार्च को इसबार आतर रहेगा। 14 मार्च शुक्रवार को उदयातिथि को लेकर दोपहर तक पूर्णिमा है, इस कारण रंगोत्सव होली नहीं मनायी जाएगी। फलस्वरूप, इसबार होली 15 मार्च को मनायी जाएगी।

अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष श्याम सुंदर पांडेय तथा अध्यात्म भारती परिषद के अध्यक्ष मोहन पांडेय की अध्यक्षता में बैठक कर पांडेय अभिमन्यु कुमार, पंडित विद्याधर शास्त्री, रामाकांत पांडेय, लक्ष्मण पांडेय, मनोज मिश्र, विष्णुदेव पांडेय, राजेन्द्र पांडेय, परमानंद पांडेय, व्यास पांडेय तथा सुधीर झा आदि विद्वतजनों ने इस निर्णय के अलावा पूजन विधि की जानकारी दी। बताया गया कि फाल्गुन की पूर्णिमा गुरुवार की सुबह 10.11 बजे से शुरू हो रही है और भद्रा भी उसी समय से आरंभ हो रहा है। भद्रा गुरुवार की रात 10.37 बजे तक रहेगी। वहीं 14 मार्च शुक्रवार को पूर्णिमा तिथि दोपहर 11.15 बजे तक है। इस कारण शुक्रवार को होलिका दहन संभव नहीं है, क्योंकि दिन में होलिका दहन की मनाही है, यह विनाशकारी माना जाता है। जबकि, 15 मार्च शनिवार को उदयातिथि के साथ ही चैत्र प्रतिपदा 12.49 बजे दोपहर तक व्याप्त है। ऐसे में शनिवार को ही होलिका विभूति धारण और रंगोत्सव होली मनाना शुभप्रद है। 

उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में 13 फरवरी को होलिका दहन

ज्योतिष शास्त्र के हवाले से विद्वतजनों ने बताया कि होलिका दहन को लेकर शास्त्रों में तीन नियम बताये गए हैं। पहला पूर्णिमा तिथि, दूसरा भद्रा मुक्त काल तथा तीसरा रात्रि का समय होना चाहिए। भद्रा में श्रावणी कर्म व फाल्गुनी कर्म वर्जित है। 13 मार्च की रात में पूर्णिमा तिथि विद्यमान रहेगी व भद्रा भी रात 10.37 बजे खत्म हो जाएगी, इसलिए 13 मार्च को उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में होलिका दहन होगा। वहीं शुक्रवार 14 मार्च को सूर्याेदयकालीन पूर्णिमा, स्नान-दान की पूर्णिमा एवं कुलदेवता को सिंदूर अर्पण किया जा सकेगा। 

रोग-शोक निवृत्ति के लिए होलिका की होती है पूजा

रोग-शोक निवृत्ति के लिए होलिका की पूजा की परम्परा रही है। होलिका दहन के दिन होलिका की पूजा में अक्षत, गंगाजल, रोड़ी-चंदन, मौली, हल्दी, दीपक तथा मिष्ठान आदि से पूजा के बाद उसमें आटा, गुड़, कपूर, तिल, धूप, गुगुल, जौ, घी, आम की लकड़ी, गाय के गोबर से बने उपले या गोइठा डाल कर सात बार परिक्रमा करने से परिवार की सुख-शांति, समृद्धि में वृद्धि, नकारात्मकता का ह्रास होता है। होलिका के जलने के बाद उसमें चना या गेहूं की बाली को सेंककर या पकाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से स्वास्थ्य अनुकूल होता है। इसके साथ ही व्यक्ति दीर्घायु होता है और उसके ऐशवर्य में वृद्धि होती है।

दो शुभ नक्षत्रों के युगम संयोग में 15 को मनेगी होली

रंगोत्सव का पर्व होली उदय व्यापिनी चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में मनाया जाता है। प्रेम, सौहार्द, भाईचारा का प्रतीक व रंगों का पर्व होली चैत्र कृष्ण प्रतिपदा 15 मार्च शनिवार को मनायी जायेगी। इस दिन दो शुभ नक्षत्रों का युगम संयोग रहेगा। होली के दिन सुबह 7.46 बजे तक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र फिर, हस्त पूरे दिन विद्यमान रहेगा। इस दिन दोपहर 12.55 बजे के बाद वृद्धि योग भी रहेगा।

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