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संगीतमय श्रीराम कथा में ऐसे उमड़ रहे श्रद्धालुओं की भीड़, प्रभंजनानंद जी ने प्रवचन में क्यों कहा विचारों को स्वच्छ रखने के लिए ही है धर्म शास्त्र, पढ़ें पूरी खबर 

नगर के गांधी इंटर विद्यालय के मैदान में नौ दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा का शुरू हुआ आयोजन, 20 अक्टूबर से 28 अक्टूबर चलेगा श्रीराम कथा

Report by Nawada News Xpress 

नवादा / सूरज कुमार 

नवादा में आयोजित संगीतमय श्रीराम कथा को सुनने जिले भर से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। अयोध्या से आये श्री श्री स्वामी प्रभंजनानंद जी महाराज ने संगीमय श्रीराम कथा का प्रवचन देते हुए कहा कि विचारों को स्वच्छ रखने के लिए ही धर्म शास्त्र है। रावण शरीर से राक्षस नहीं था, वह तो प्रचंड विद्वान था, लेकिन उसके विचारधारा राक्षस प्रवृत्ति का था।

दूसरों को रूलाने की प्रवृति रखना ही रावण होता है। श्रीराम कथा शुरू होने से पूर्व आरती की गई, जिसमें नगर के प्रसिद्ध मॉडर्न ग्रुप व टीके ऑटोमोबाइल स्वराज ट्रैक्टर शोरूम के संचालक संजय सिंह सपरिवार शामिल हुए। उनके साथ राजेश कुमार श्री सपरिवार आरती में शामिल हुए। वहीं प्रसिद्ध धर्मशीला देवी हॉस्पिटल के डायरेक्टर अविनाश कुमार भी शामिल होकर श्री प्रभंजनानंद जी महाराज से अशीर्वाद लिया।

मौके पर आयोजक समिति में सुरेन्द्र प्रसाद व डॉ आरपी साहू सहित कई गणमान्य लोग मौजूद थे। वहीं महिला श्रद्धालुओं का उत्साह और आस्था देखते बन रहा था। श्रीराम कथा शिविर में दयालू कान्हा फाउंडेशन की ओर से आगंतुक श्रद्धालुओं के लिए मुफ्त चाय व पेयजल की व्यवस्था की गई है।

श्रीराम जन्म कथा को सुनाते हुए प्रभंजनानंद जी महाराज ने बताया कि व्यक्ति को कर्म में निरंतरता बनाकर रखना चाहिए, निरंतरता होने से ही सफलता प्राप्त होती है। अभ्यास के द्वारा मुढ़ से मुढ़ व्यक्ति भी विद्वान बन सकता है, जिसकी साधना में निरंतरता होती है उसी की उपासना भी सफल होती है।

कथा के दौरान उन्होंने कहा कि कभी भी स्वयं की तुलना दूसरों से न करें अपने भाग्य की तुलना दूसरों से कर व्यक्ति व्यर्थ ही तनाव लेता है। परमात्मा भाग्य का चित्र अवश्य बनाता है, मगर उसमें कर्म रूपी रंग तो व्यक्ति स्वयं भरता है। हर परिस्थिति में व्यक्ति को प्रसन्न रहना चाहिए, कर्म में निरंतरता बनाकर रखना चाहिए और यह सूत्र अपने जीवन में उतार ले ईश्वर कृपा से जो प्राप्त है वह पर्याप्त है।

श्री महाराज ने कहा कि प्रसन्नता जीवन का सबसे बड़ा स्वर्ग है व निराशा और उदासीनता सबसे बड़ा नरक। व्यक्ति सुख तो प्राप्त करना चाहता है पर सुख के मार्ग पर चलने का प्रयास नहीं करता, वह चलता है दुख के मार्ग पर और कल्पना सुख की करता है। उन्होंने कहा कि सिद्धि का अर्थ भौतिक वैभव नहीं, बल्कि परम तत्व की प्राप्ति है।

दुनिया में केवल धन, शक्ति और प्रतिष्ठा से संपन्न हो जाने पर कोई पूजनीय व वंदनीय नहीं होता है, बल्कि अपने आचरण तथा अपनी शक्ति को सही दिशा में लगाकर ही दुनिया में पूजनीय वंदनीय तथा अमरत्व को प्राप्त करता है। उन्होंने भगवान श्रीराम जन्म के प्रसंगों को अद्भुत और

विद्वता पूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया, जिसे सुनकर श्रोता भक्ति भाव में डूब गये। यह संगीतमय श्रीराम कथा 20 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक नगर के गांधी इंटर विद्यालय के मैदान में प्रतिदिन संख्या 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक चलता है, जिसमें शहरवासी बढ़चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं।

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