रमजान के पाक साफ महीने का आखिरी अशरा हम सब के बीच है- नेजाम
रमजान का महीना खुदा का पसंदीदा महीना बताया, जिले भर के मस्जिदों में जुटे नमाजी
Report by Nawada News Xpress
नवादा / सूरज कुमार
पवित्र रमजान महीने के अंतिम जुमा मुस्लिम समुदाय के लिये खास माना जाता है। इस अंतिम जुमे को अलविदा जुमा के रूप में नमाज अदा करने लोग विभिन्न मस्जिदों में जुटे। शहर के प्रमुख सब्जी बाजार जामा मस्जिद में अलविदा जुमा का नामज अदा करने वालों के लिये विशेष सुरक्षा व्यवस्था का इंतजाम किया गया था।

दोपहर को नमाज अदा होने तक सुरक्षा को लेकर जगह-जगह पुलिस बल तैनात रही। नमाज अदा करने आये लोगों ने बताया कि आम दिनों में लोग 12 रिकात नमाज अदा करते हैं, लेकिन जुमा के दिन 14 रिकात नमाज होता है। इसमें 4 रिकात सुन्नत पढ़ा गया। वहीं नमाज अदा करने के साथ-साथ दुआएं भी मांगी गई। जिसमें देश-दुनिया, समाज व परिवार सहित सभी की सलामती और अमन-चैन की दुआएं मांगी गई।

जिला मुख्यालय सहित विभिन्न क्षेत्रों में रमजान-उल-मुबारक की अलविदा जुमा की नमाज अदा की गई। शहर के जामा मस्जिद में नमाज-ए-अलविदा जुमा अदा कराई गई। नमाज-ए-अलविदा जुमा को लेकर मुस्लिम मुहल्लों में सुबह से ही चहल-पहल देखी गई। खास कर बच्चों में विशेष उत्साह देखा गया। अलविदा जुमा की नमाज अदा करने के लिए नमाजी दोपहर 12 बजे से ही मस्जिदों में दाखिल होने लगे थे। अलविदा जुमा के अवसर पर जकात व फितरा मांगने वालों की भीड़ सभी मस्जिदों के पास लगी रही।

रमजान के पाक साफ महीने का आखिरी अशरा हम सब के बीचः- नेजाम
नेशनल इस्लामिक फेस्टिबल फेडरेशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष मो नेजाम खां उर्फ कल्लू ने बताया कि रमजान के पाक साफ महीने का आखिरी अशरा हम सब के बीच है। इस महीने के आखिरी जुमा यानी शुक्रवार को अलविदा जुमा कहते है। यह जुमा एहसास दिलाता है कि रमजान का ये अफजल और नेक महीना हमारे बीच से रुखसत हो रही है।

इस दिन मुस्लिम धर्म के लोग जोहर के वक्त अलविदा जुमा की नमाज पढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि जुमे और ईद की नमाज बाकी नमाज से थोड़ी अलग होती है। इन दोनों नमाजों के लिए कुत्बा जरूरी होता है और कुत्बा हर किसी के जरूरी होता है और कुत्बा हर किसी के जेहन में कैद नहीं हो सकता है। ये एक तरीके की तकरीर होती है, जिसमें दुआएं शामिल होती हैं।

उन्होंने बताया कि रमजान का आखिरी जुमा यानी अलविदा का मतलब होता है रुखसत होना। यानी रमजान अब हमारे बीच रुखसत होने वाला है। रमजान के आखिरी जुमे को सैय्यदुल अय्याम कहा जाता है। ये सभी दिनों से अफजल होता है। यह जाहिर सी बात है कि जब ऐसा मौका मुसलमानों के बीच से रुखसत हो रहा हो, तो उनका गमगीन होना लाजिमी है। इसलिए अलविदा के मौके पर मुसलामन नमाज में अल्लाह से अगला रमजान पाने की इच्छा जताते हैं।

उन्होंने कहा कि माह-ए-रमजान में ही कुरआन-ए-पाक को उतारा गया। रमजान के महीने में रहमतों की बारिश होती है। जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं, साथ ही जहन्नुम के दरवाजे बंद कर दिये जाते हैं। उन्होंने कहा कि रमजान का महीना खुदा का पसंदीदा महीना है। अलविदा जुमा अदा करने के बाद लोगों ने खुदा से दुआएं की।
